गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
मार्कण्डेयजी कहते हैं- क्रौष्टुकिजी! यह तुमसे सावर्णिक मन्वन्तरका भलीभाँति वर्णन किया गया। साथ ही महिषासुर-वध आदिके रूपमें भगवती दुर्गाकी महिमा भी बतलायी गयी। मुनिश्रेष्ठ! अब दूसरे सावर्णिक मन्वन्तरकी कथा सुनो। दक्षके पुत्र सावर्णि नवें मनु होनेवाले हैं। उनके समयमें जो देवता, मुनि और राजा होंगे, उन सबके नाम सुनो। पार, मरीचिगर्भ और सुधर्मा-ये तीन प्रकारके देवता होंगे। इनमेंसे प्रत्येक वर्गमें बारह-बारह देवता होंगे। इस समय जो छः मुखोंवाले अग्निकुमार कार्तिकेय हैं, वे ही उस मन्वन्तरमें 'अद्भुत' नामवाले इन्द्र होंगे। मेधातिथि, वसु, सत्य, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान्, सबल तथा हव्यवाहन-ये सप्तर्षि होंगे। धृष्टकेतु, बर्हकेतु, पञ्चहस्त, निरामय, पृथुश्रवा, अर्चिष्मान्, भूरिद्युम्न तथा बृहद्भय-ये दक्षपुत्र सावर्णि मनुके राजकुमार होंगे।
अब दसवें मनुके मन्वन्तरका वर्णन सुनो। दसवें मन्वन्तरमें ब्रह्माजीके पुत्र बुद्धिमान् सावर्णिका अधिकार होगा। ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तरमें सुखासीन और निरुद्ध-ये दो प्रकारके देवता होंगे। उनकी संख्या सौ होगी। उस समय सौ प्रकारके प्राणी उत्पन्न होंगे, इसलिये उनके देवता भी सौ ही होंगे। उस मन्वन्तरमें इन्द्रके समस्त गुणोंसे युक्त 'शान्ति' नामक इन्द्र होंगे। आपोमूर्ति, हविष्मान्, सुकृत, सत्य, नाभाग, अप्रतिम और वासिष्ठ-ये सप्तर्षि होंगे। सुक्षेत्र, उत्तमौजा, भूमिसेन, वीर्यवान्, शतानीक, वृषभ, अनमित्र, जयद्रथ, भूरिद्युम्न तथा सुपर्वा-ये मनुके पुत्र होंगे।
अब धर्मके पुत्र सावर्णिका मन्वन्तर सुनो। धर्मसावर्णि मन्वन्तरमें विहङ्गम, कामग तथा निर्माणरति-ये तीन प्रकारके देवता होंगे। इनमेंसे एक-एक तीस-तीस देवताओंका समुदाय है। मास, ऋतु और दिन-ये निर्माणरति कहलायेंगे। रात्रियोंकी संज्ञा विहङ्गम होगी और मुहूर्तसम्बन्धी गण कामग कहलायेंगे। विख्यात पराक्रमी 'वृष' उनके इन्द्र होंगे। हविष्मान्, वरिष्ठ, अरुणनन्दन ऋष्टि, निश्चर, अनघ, महामुनि विष्टि तथा अग्निदेव- ये सात सप्तर्षि होंगे। सर्वत्रग, सुशर्मा, देवानीक, पुरूद्वह, हेमधन्वा तथा दृढायु-ये भविष्यमें होनेवाले राजा धर्मसावर्णि मनुके पुत्र होंगे। बारहवाँ मन्वन्तर रुद्रपुत्र सावर्णि मनुका होगा। उसके आनेपर सुधर्मा, सुमना, हरित, रोहित और सुवर्ण-ये पाँच देवगण होंगे। इनमेंसे प्रत्येक गण दस-दस देवताओंका होगा। महाबली ऋतधामा उनका इन्द्र होगा। द्युति, तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोनिधि, तपोरति तथा तपोधृति-ये सात सप्तर्षि होंगे। देववान्, उपदेव, देवश्रेष्ठ, विदूरथ, मित्रवान् तथा मित्रविन्द-ये भावी मनुके वंशज राजा होंगे।
अब 'रौच्य' नामक तेरहवें मनुके समयमें होनेवाले देवताओं, सप्तर्षियों तथा राजाओंका वर्णन सुनो। सुधर्मा, सुकर्मा और सुशर्मा-ये तीन उस समयके देवता होंगे। महाबली एवं महापराक्रमी 'दिवस्पति' उनके इन्द्र होंगे। धृतिमान्, अव्यय, तत्त्वदर्शी, निरुत्सुक, निर्मोह, सुतपा और निष्प्रकम्प-ये सात सप्तर्षि होंगे। चित्रसेन, विचित्र, नयति, निर्भय, दृढ, सुनेत्र, क्षत्रबुद्धि तथा सुव्रत- ये रौच्य मनुके पुत्र राजा होंगे।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य